Aisa kuch hua nhi khaas likhne laayak zindagi me,
एक यादगार सफ़र,,,
शाम की ट्रेन थी, मुंबई की सड़कों में बेहद सन्नाटा था,
सबसे लड़कर पहली बार मंज़िल की तलाश में निकल पड़े थे,
अंजान शहर में,अपनी पहचान बनाने की सफ़र शुरू किए थे,
दुनियां की भीड़ में खुदको साबित करने जो करना था,
याद है आज भी वो सीट जहा हम भेंटे थे, विंडो सीट थी,
अचानक से कोई आकर हमारे बगलवाले सीट पर भेट गया,
कुछ बेचैनी थी उसकी आंखों में,जाने क्यों हम एक अजनबी की आंखो में खोने लगे थे, बार बार उसके और ही देखने लगे थे.पल बार में उसके ख्यालों में खोने लगे थे.
कुछ देर बाद जब हम ट्रेन से उतरकर पानी लेने गए थे,
5 रुपए केलिए दुकानदार से लड़ने लगे, इस लड़ाई की चक्कर में ट्रेन कब छूटा ध्यान ही ना रहा,
काफी रात होचुकी थी, खुदको अकेले पाकर डरने लगे थे,
कुछ तीन चार लड़को को देखा तो घबराहट में ख़ामोश खड़े थे,
थोड़ी देर बाद जो लड़के हमें परेशान कर रहे थे,आकर माफी मांगने लगे,
हम हैरान होकर देखते रह गए,जाने इन सबको क्या हुआ हैं यही सोचने लगे,
तभी हमारे पिछे वही शकश खड़ा था,जो ट्रेन में हमारी बगलवाली सीट पे भेटा था,
ना जान ना पहचाना हमारे खातिर अपना सफर अधूरा छोड़कर क्यों आगाया,
ऐसे लाखों सवाल थे मन में,इससे पहले हम कुछ बोल पाते उसने कहा हम बस आपकी मदद करना चाहते थे,
बस इतना कहकर हमारा हाथ पकड़कर चलने लगा,
उस दिन चलते चलते रास्ते में एक घर दिखा बस वही
कुछ देर विश्राम कर फिर आगे निकलना सोचे थे,
जैसे ही आंख लगी हमें नींद आने लगी,
सुबह उठकर देखा तो,कोई नहीं था,साथ हमारे,
बस एक चिट्ठी थी,उसकी हमारे नाम की,
यह तक की उसका नाम भी ना लिखा था,
बस आपकी वजसे हमारी जान बची है शुक्रिया लिखा था,
मन में लाखों सवाल उठने लगे,आखिर कोन था वो,
आज हम अपनें सपनों की संग जीरहे, तो एक वही वजह बनकर रह गया,,
जो बस चंद घंटों में ही इतने कुछ अधूरे सवाल छोड़ गया,
दिल के तार जोड़कर जाने कहा गुम होगया,
बस ए एक खूबसूरत सा सपना था,या फिर क़िस्मत का कोई कारनामा था,,,????।।
©Dr. Nikita Dudagi
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