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Writer's pictureNoel Lorenz

Father



पिता की छाँव का एहसास सभी को हर वक़्त होता है,

अब ज़ाहिरी तौर पर क़रीब नहीं तो दर्द बहुत होता है।


दीदा-ए-पुर-नम व लब भी हमारे ख़ुश्क हो रहे होते हैं,

उनके दस्ते शफ़क़्क़त का तरीका याद आ रहा होता है।


जहाँ में अपना कहने वाले तो बखूबी मिल रहे होते हैं,

रहमान बाँदवी उनके जैसे मोहब्बत करने वाला भी कोई नहीं होता है।

रहमान बाँदवी

@ar51292

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