पिता की छाँव का एहसास सभी को हर वक़्त होता है,
अब ज़ाहिरी तौर पर क़रीब नहीं तो दर्द बहुत होता है।
दीदा-ए-पुर-नम व लब भी हमारे ख़ुश्क हो रहे होते हैं,
उनके दस्ते शफ़क़्क़त का तरीका याद आ रहा होता है।
जहाँ में अपना कहने वाले तो बखूबी मिल रहे होते हैं,
रहमान बाँदवी उनके जैसे मोहब्बत करने वाला भी कोई नहीं होता है।
रहमान बाँदवी
@ar51292
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