top of page

Poem by Nikhil Jain

Writer: Noel LorenzNoel Lorenz

शब्द पूजा दिया गया था

मैंने पूजा का वर्णन किया है

प्रत्येक व्यक्ति का नजरिया भिन्न होता है कोई कर्म को पूजा मानता कोई धर्म को, कोई प्रेम को कोई भक्ति को,

इसका आशय है कि जो कर्म को पूजा मानते है वो भी पाप पुण्य से भयभीत रहते है जो धर्म को पूजा मानते है वो हिन्दू मुस्लिम का विचार रखते है, प्रेम को पूजा मानते है लोग फिर भी प्रेम विवाह में आपत्ति रखते है, भक्ति को पूजा मानने पर फ़िज़ूल के पाखंड में पड़ते है जैसे अंधविशवास, ज्योतिषी, तंत्र विद्या


कर्म ही पूजा है तो पूरे समर्पण से करनी चाहिए इसमें पाप पुण्य अच्छे बुरे भले का क्या सोचना,

धर्म पूजा है तो सभी धर्मो का बराबर सम्मान करना चाहिए हिन्दू आरती गाए और मुसलमान नमाज़ ही क्यों पढ़े धर्म पूजा है तो सभी को समान समझो

प्रेम को पूजा माना है तो उसके हर रूप को स्वीकृति मिलनी चाहिए

असल में पूजा तो वही है जहां समर्पण की पराकाष्ठा हो जहां सिर्फ तल्लीनता हो कोई विषमता ना हो।


अब तक भावनाओं की बात थी अब बारी है व्यक्तिगत रूप से पूजा का अर्थ


उपर बात धर्म की थी अब बात ईश्वर की है, यदि ईश्वर को पूजा माना है तो ये क्यों सुनने में आता है कि हिन्दू शिवाला में लौटा चढ़ाए और मुस्लिम मस्जिद में चादर, ईसाई चर्च में मोमबत्ती जलाए, मंदिर मस्जिद के लिए इतने झगड़े होते है वो नहीं होने चाहिए ना जब ईश्वर को पूजा माना है तो क्योंकि ईश्वर तो सभी समान है कौन से शास्त्रों में लिखा है कि ये ईश्वर हमारा है और ये तुम्हारा??

पूजा मानते हो ईश्वर को तो सभी बराबर है ना फिर काहे की लड़ाई करते फिरते है इतनी??

अगर मां के पैरों में जन्नत और पिता को जन्नत का दरवाज़ा कहते है जन्मदाता को अपना भगवान कहते है तो क्यों बुढ़ापे में उन्हें ठोकरें खाने के लिए छोर देते है क्यों शहरों में ढेरों वृद्धाश्रम भरे पड़े है?

प्रियतम वाला कथन उचित है कि प्रेमी की जगह प्रियतम आना चाहिए

लोग प्रेम में प्रियतम को भगवान मान कर पूजते फिर क्यों विवाह बंधन में हैसियत नापी जाती क्यों ऊंच नीच देखी जाती प्रियतम यदि भगवान है तो उसे अपनाना चाहिए ना हर कीमत पर..

अब आती है इंसानियत, इंसानों का सर्वश्रेष्ठ गुण, हर व्यक्ति में ईश्वर का वास है यदि इंसानियत को भगवान माना है और पूजा है तो अमीरी गरीबी का भेदभाव है ही क्यों??

क्यों पैसों से तोला जाता है इंसान को?


वास्तव में अपनी अंतरात्मा की शांति के लिए, अपनी मोक्ष की प्राप्ति के लिए हम जो कुछ भी करते है बिना सोचे विचारे, समर्पण की पराकाष्ठा पर, जिसमें सभी का हित निहित हो

वो असली पूजा है

वो सच्ची भक्ति है

और वही हमारा ईश्वर है।।


Nikhil Jain

Maharashtra



Comments


  • Instagram
  • Amazon
  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn
  • YouTube
Copyright © 2024, Noel Lorenz. All Rights Reserved.
bottom of page