तिलिस्म
एक जादू है पापा की आवाज़ में,
उनकी एक आवाज़ से नींद कापती है,
मम्मी चार बार जगाये, नहीं उठना है,
पापा की आवाज़ सुनते ही नींद भागती है,
चले जाते थे खेलने मैदान में हम हर बार,
मेरी मम्मी मुझसे भी चालक है यार,
उनकी ना सुनकर मैं खेलने जाने की सोचता,
पापा से बोलकर, रोक देती थी कई बार,
ना जाने क्या तिलिस्म है मेरे कदमों में ,
वापस आता मैं खेलकर, घर में कदम रखता था,
मेरे पापा, जो मेरी तारीफ़ कर रहे होते थे,
उनके है मुंह पल भर में ही डाट भी खाता था,
ऐसा नहीं कि मैं उनसे डरता था या उनका खौफ था,
उनकी बातें ना मानने की हिम्मत नहीं जुटा पाता हूं मैं,
गलतियां मैं जानबूझकर करता था, कभी कभी,
आज भी पापा की आवाज का जादू देख पाता हूं मैं
_आकाश
Akash Chaurasiya
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